उत्तराखंड चार धाम यात्रा
26 अप्रैल 2024 जो कि केदारनाथ धाम के खुलने की तिथि रखी गई है; इसके बाद से लोग चार धाम यात्रा को लेकर अपने तैयारी में जुट गए हैं। यह यात्रा हिंदुओं के लिए बहुत पवित्र माना गया है। कहा जाता है की चार धाम यात्रा करने वाले व्यक्ति को दूसरा जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती वह इसी जन्म में मोक्ष को प्राप्त होता है। इसलिए लगभग सभी भारतीय परिवारों की इच्छा होती है, कि वे अपने जीवन में एक बार चार धाम यात्रा के लिए अवश्य जाएं।
चार धाम यात्रा वैसे तो दो प्रकार की होती है, जिसमें एक बड़ा चार धाम जिसमें पुरी, रामेश्वरम, द्वारिका व बद्रीनाथ शामिल होते हैं; लेकिन यहां हम उत्तराखंड चार धाम यात्रा के बारे में जानेंगे।
You Might Be Like These Suggested Tours
उत्तराखंड चार धाम जो की यमुनोत्री, गंगोत्री केदारनाथ और बद्रीनाथ को मिलाकर संपूर्ण होती है। माना जाता है, इस यात्रा को सर्वप्रथम पांडव भाइयों ने किया था।
Need To Plan a Trip? Just Fill Details
यह चार धाम धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है इस यात्रा मार्ग में अनेक सुंदर नजरों देखने को मिलते हैं।
चार धाम यात्रा के लिए यातायात सुविधा
चार धाम यात्रा शुरू करने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार या ऋषिकेश है और यहीं हरिद्वार से ही यात्रा चार धामों के लिए प्रारंभ होती है।
हरिद्वार आने के लिए ट्रेन भारत के अन्य भागों से भी मिलती है अन्यथा दिल्ली जाकर वहां से हरिद्वार की ट्रेन भी आसानी से ले सकते हैं।
चार धाम यात्रा के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जाली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो की देहरादून में स्थित है। यहां आकर भी चार धाम के लिए यात्रा शुरू की जा सकती है
सड़क मार्ग से चार धाम यात्रा करना बेहद आसान है। चार धामों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए उत्तराखंड सरकार ने चौड़ी सड़कों का निर्माण कराया है।
उत्तराखंड चार धाम के लिए बस सुविधा हरिद्वार से उपलब्ध है व हर धाम से दूसरे धाम के लिए बस आसानी से उपलब्ध रहती है।
- Booking For Badrinath and Kedarnath Tour
1. यमुनोत्री धाम
यात्रा के शुरूआत यमुनोत्री धाम से होती है, जो की उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के गढ़वाल क्षेत्र में समुद्र तल से 3293 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
यह स्थान यमुना का उद्गम स्थल है, जहां से बहती हुई यमुना बहती हुई यमुना प्रयागराज में गंगा के साथ संगम करती है।
इस मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया की शुभ तिथि पर खोले जाते हैं, और यह अक्टूबर से नवंबर तक इन्हें वापस बंद कर जाता है।
मान्यताओं के अनुसार सूर्य की पुत्री यमुना व पुत्र यमराज है। एक बार रक्षाबंधन पर भाई को रक्षा सूत्र बांधने के उपरांत यमराज ने वरदान मांगने को कहा तब यमुना ने आशीर्वाद मांगा और कहा यमुना के जल में स्नान करने के बाद वह व्यक्ति पापों से मुक्त हो जाएगा और उसे आप दंडित नहीं करेंगे इसी वजह से यहां प्रत्येक वर्ष यमुनोत्री में लाखों श्रद्धालु आते है और यमुना में स्नान करते हैं।
2. गंगोत्री धाम
उत्तराखंड के चार धामों में से एक धाम है, जो स्थान समुद्र तल से 3140 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थान भागीरथी नदी का उद्गम स्थल है, जो की देवप्रयाग के बाद अलकनंदा से मिलकर गंगा का रूप धारण कर लेती है।
गंगोत्री से 19 किलोमीटर दूर गोमुख स्थित है, जहां ट्रैक करके भी जाया जा सकता है।
3. केदारनाथ धाम
केदारनाथ धाम उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है, जिसकी ऊंचाई 3583 मीटर है। चार धामों में से एक धाम जो अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है जो की 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग भी है।
अत्यधिक ठंड होने के कारण यह मंदिर अक्षय तृतीया के दिन खुलकर लगभग 6 महीने पश्चात शरद पूर्णिमा के दिन इसके कपाट बंद कर दिए जाते हैं। बाकी समय यह मंदिर लगभग बर्फ में ढका रहता है।
यहां आने के लिए गौरीकुंड से 22 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई करनी पड़ती है।
मान्यताओं के अनुसार यहां स्थित मंदिर को पांडव भाइयों ने बनाया था।
2013 में आए विनाशकारी बाढ़ ने रुद्रप्रयाग में काफी तबाही मचाई लेकिन पहाड़ पर से आए एक विशाल शिला ने मंदिर को बचाए रखा इसके बाद से इस शिला का नाम भीम शिला रख दिया गया।
4. बद्रीनाथ धाम
उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित यह प्रमुख मंदिर जिसका वर्णन महाभारत, विष्णु पुराण और स्कंद पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।
यह मंदिर 3100 मीटर की ऊंचाई पर अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है।
मंदिर के भीतर 1 मीटर ऊंची शालिग्राम के पत्थर से बनी भगवान विष्णु की प्रतिमा जो की आठवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य जी ने पास ही स्थित कुंड से निकाली और उन्हें उसे मंदिर में प्रतिस्थापित किया।
यह मंदिर भारत के सबसे व्यस्ततम मंदिरों में से एक है जहां 2012 में लगभग 10 लाख से ऊपर दर्शनार्थियों का आना रिकॉर्ड में दर्ज हुआ।
यह मंदिर केवल छह माह के लिए जो की अप्रैल के अंत से नवंबर के प्रारंभ तक ही खुला रहता है।
चार धाम यात्रा कैसे करें
चार धाम यात्रा में लगभग 9 से 10 दिन का समय लगता है प्राय: यदि इसे और जल्दी या देरी से भी किया जा सकता है। समन्यतया दर्शनार्थी इस यात्रा को 10 दिन में संपन्न कर लेते हैं।
- प्रथम दिन यात्रा के पहले दिन हरिद्वार से बड़कोट जा सकते हैं, जो की हरिद्वार से 180 किलोमीटर दूर है जिसे तय करने में 8 घंटे का समय लगता है और पहले दिन यही रात्रि विश्राम किया जा सकता है।
- दूसरा दिन यात्रा के दूसरे दिन में यात्रा बड़कोट से प्रारंभ कर जानकी चट्टी तक जाया जाता है। इसके बाद 5 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। मंदिर दर्शन के पश्चात जानकी चट्टी से बड़कोट जाकर बड़कोट में ही रुक सकते हैं।
- तीसरा दिन यात्रा के तीसरे दिन में यात्री बड़कोट से उत्तरकाशी जा सकते हैं, और रात्रि विश्राम उत्तरकाशी में कर सकते हैं।
- चौथा दिन इस दिन उत्तरकाशी से गंगोत्री जाकर मंदिर दर्शन कर वापस उत्तरकाशी आ सकते हैं।
- पाँचवाँ दिन उत्तरकाशी से सोनप्रयाग जो की लगभग 220 किलोमीटर है। जिसकी यात्रा 8 से 9 घंटे की भीतर की जा सकती है, जिसके बाद रात्रि विश्राम सोनप्रयाग में किया जा सकता है।
- छठा दिन इस दिन सोनप्रयाग से गौरीकुंड पहुंचकर वहां से 22 किलोमीटर की केदारनाथ यात्रा प्रारंभ की जा सकती है और महादेव के दर्शन के पश्चात केदारनाथ में रात्रि विश्राम किया जा सकता है।
- सातवां दिन महादेव के दर्शन के पश्चात सुबह वापस नीचे उतर कर सोन प्रयाग जाकर वहां पर रात्रि विश्राम किया जा सकता है।
- आठवां दिन सोन प्रयाग से बद्रीनाथ जो कि लगभग 220 किलोमीटर है इसकी यात्रा 8 से 9 घंटे के बीच में की जा सकती है और रात्रि विश्राम बद्रीनाथ में ही किया जा सकता है।
- नौवां दिन इस दिन बद्रीनाथ मंदिर के दर्शन करने के पश्चात आसपास के पर्यटन स्थल को घूमने के बाद वापस पीपलकोटी तक आया जा सकता है।
- दसवां दिन इस दिन पीपलकोटी से हरिद्वार जो की 230 किलोमीटर दूर है आया जा सकता है व रात्रि विश्राम के बाद अपने घर की ओर अगले दिन प्रस्थान कर सकते हैं।
यात्रा में ध्यान रखने योग्य विशेष बातें
- यात्रा करने से पहले यात्रा का रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य होता है; जिसे चार धाम यात्रा की वेबसाइट से यात्रा रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है।
- बरसात के मौसम में चार धाम यात्रा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इस समय भू स्खलन की संभावनाएं अधिक होती है।
- यात्रा के समय महत्वपूर्ण सामान जैसे कि ऊनी वस्त्र, पानी की बोतल और सूखे मेवे भी आवश्यक रूप से रखना चाहिए।
- यात्रा मार्ग में कभी भी भू स्खलन हो सकता है,जिससे यात्रा में देरी हो सकती है। इसलिए यात्रा समय पहले से ही बढ़ाकर चले जिससे यात्रा पूरी की जा सके।